सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए ईडी से बिना ट्रायल लंबी हिरासत पर सवाल उठाए। मामले में देरी, स्वास्थ्य मुद्दों और न्यायिक प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणियां।
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ED) से तीखे सवाल पूछते हुए हिरासत में रखने की सीमा पर गंभीर चिंताएं जताई हैं। कोर्ट ने कहा, “किसी आरोपी को बिना ट्रायल के कब तक जेल में रखा जा सकता है?” यह टिप्पणी न्याय व्यवस्था में देरी के कारण होने वाले मानवाधिकार हनन की ओर ध्यान आकर्षित करती है।
मामले की पृष्ठभूमि
चटर्जी, जिन्हें जुलाई 2022 में मनी लॉन्ड्रिंग और भर्ती घोटाले के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था, पिछले ढाई साल से जेल में बंद हैं। हालांकि, मामले में ट्रायल अब तक शुरू नहीं हुआ है। इस पर कोर्ट ने कहा कि बिना ट्रायल किसी आरोपी को लंबे समय तक जेल में रखना न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
स्वास्थ्य और न्याय में देरी का मुद्दा
चटर्जी के वकील मुकुल रोहतगी ने उनकी खराब स्वास्थ्य स्थिति का हवाला देते हुए दलील दी कि 73 वर्षीय चटर्जी को जेल में रखना उचित नहीं है, खासकर जब ट्रायल लंबा खिंच सकता है। ईडी की ओर से देरी पर कोई ठोस जवाब न मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अगर अंत में आरोपी दोषमुक्त हुआ तो जेल में बिताए सालों की भरपाई कौन करेगा?”
न्यायिक संतुलन की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न्यायिक संतुलन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा की ओर इशारा करती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न केवल पार्थ चटर्जी के लिए बल्कि लंबित मामलों में कैद कई अन्य आरोपियों के लिए भी मिसाल कायम कर सकता है।
अगली सुनवाई 2 दिसंबर को होगी, जब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आएगा।
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