Tuesday, June 17, 2025

ISRO का PROBA-3 मिशन: अंतरिक्ष की ओर नई उड़ान, लॉन्चिंग में देरी पर जानें वजह

New Delhi , Latest Updated On - Dec 04 2024 | 12:30:00 PM
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ISRO का प्रोबा-3 मिशन तकनीकी कारणों से स्थगित, अब लॉन्चिंग 5 दिसंबर को होगी। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के सहयोग से 200 मिलियन यूरो की इस परियोजना के तहत सूर्य के बाहरी वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए दो उपग्रह मिलिमीटर सटीकता से उड़ान भरेंगे।

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने महत्त्वपूर्ण प्रोबा-3 मिशन की लॉन्चिंग को कुछ तकनीकी कमियों के कारण टाल दिया है। यह मिशन आज यानी 4 दिसंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम 4:08 बजे लॉन्च किया जाना था, लेकिन प्रक्षेपण से कुछ मिनट पहले ही इसे रोक दिया गया। इसरो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इसकी जानकारी देते हुए कहा कि पीएसएलवी-सी59 रॉकेट से जुड़े इस मिशन में प्रोबा-3 अंतरिक्ष यान के भीतर कुछ विसंगतियां पाई गई हैं, जिसके चलते लॉन्च को फिलहाल स्थगित किया गया है। अब इसे कल शाम 4:12 बजे फिर से प्रक्षेपित करने का फैसला लिया गया है।

प्रोबा-3 मिशन की विशेषताएं और महत्त्व
प्रोबा-3 मिशन अंतरिक्ष अन्वेषण में एक अनूठी और अत्याधुनिक परियोजना है। इसे दुनिया की पहली ‘प्रिसिजन फॉर्मेशन फ्लाइंग’ परियोजना के रूप में पहचाना जा रहा है, जिसका उद्देश्य सूर्य के बाहरी वायुमंडल, जिसे कोरोना कहते हैं, का अध्ययन करना है। इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) ने इस मिशन के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के साथ साझेदारी की है, जिसमें स्पेन, पोलैंड, बेल्जियम, इटली, स्विट्जरलैंड जैसे कई देश शामिल हैं।

प्रिसिजन फॉर्मेशन फ्लाइंग: अंतरिक्ष में एक नई तकनीक का परीक्षण
प्रोबा-3 मिशन की सबसे खास बात यह है कि इसमें दो उपग्रह अंतरिक्ष में एक साथ एक स्थिर कॉन्फिगरेशन में उड़ान भरेंगे। इसे 'प्रिसिजन फॉर्मेशन फ्लाइंग' कहा जाता है। इन दोनों उपग्रहों के बीच दूरी मिलीमीटर तक की सटीकता में होगी, जो अंतरिक्ष विज्ञान में एक बड़ी तकनीकी उपलब्धि मानी जाती है। ये उपग्रह सूर्य के कोरोनल मास इजेक्शन (CME) और कोरोनल सोलर इवेंट्स जैसे खगोलीय घटनाओं का अध्ययन करेंगे, जिससे अंतरिक्ष में सौर विकिरण और अंतरिक्ष मौसम के प्रभाव को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा।

यूरोपीय सहयोग और मिशन की लागत
प्रोबा-3 मिशन एक अंतरराष्ट्रीय साझेदारी का हिस्सा है, जिसमें यूरोप के कई देश इसरो के साथ सहयोग कर रहे हैं। मिशन की अनुमानित लागत लगभग 200 मिलियन यूरो (₹1700 करोड़) आंकी गई है। इसके तहत दो साल तक अंतरिक्ष में इन उपग्रहों का कामकाज और डेटा कलेक्शन जारी रहेगा।

इस मिशन के माध्यम से अंतरिक्ष विज्ञान और सौर अध्ययन के क्षेत्र में नई दिशा मिल सकती है, क्योंकि यह पहली बार होगा जब इतनी सटीकता से दो उपग्रह एक साथ अंतरिक्ष में निर्धारित दूरी पर उड़ान भरेंगे।

लॉन्च में देरी की वजह
लॉन्चिंग के कुछ मिनट पहले ही इसरो के वैज्ञानिकों ने प्रोबा-3 अंतरिक्ष यान में कुछ तकनीकी विसंगतियां पाईं। हालांकि, इसरो ने यह स्पष्ट किया है कि यह केवल तकनीकी कारणों से किया गया है, और इसमें किसी बड़े जोखिम की बात नहीं है। मिशन की जटिलता को देखते हुए वैज्ञानिक इसे हर कोण से सुनिश्चित करना चाहते हैं ताकि कोई भी तकनीकी त्रुटि मिशन की सफलता को प्रभावित न करे।

आगे की योजना
अब इस मिशन को कल यानी 5 दिसंबर की शाम 4:12 बजे पुनर्निर्धारित किया गया है। इस देरी के बावजूद, प्रोबा-3 मिशन का उद्देश्य और उसकी संभावनाएं इसे बेहद खास बनाती हैं। यह मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई ऊंचाई पर ले जाने की दिशा में एक और बड़ा कदम है।

अंततः, प्रोबा-3 मिशन इसरो की प्रौद्योगिकी क्षमता और वैश्विक अंतरिक्ष सहयोग का एक आदर्श उदाहरण है, जो आने वाले वर्षों में विज्ञान और अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए नए द्वार खोल सकता है।

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