भारत ने संयुक्त राष्ट्र के 300 अरब डॉलर जलवायु फंडिंग पैकेज को खारिज किया, कहा- यह ग्लोबल साउथ की जरूरतों के लिए अपर्याप्त है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट।
जलवायु परिवर्तन से जूझ रही दुनिया को बचाने की योजनाएं अक्सर बहस और असहमति का केंद्र बन जाती हैं। ऐसा ही कुछ हुआ संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (कॉप-29) में, जहां 300 अरब अमेरिकी डॉलर के जलवायु फंडिंग पैकेज को लेकर विवाद खड़ा हो गया। भारत ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए इसे ग्लोबल साउथ के विकासशील देशों की जरूरतों के साथ अन्याय करार दिया।
बैठक में भारत की नाराज़गी
अजरबैजान के बाकू में आयोजित इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहीं चांदनी रैना ने जलवायु फंडिंग पैकेज को न केवल 'अपर्याप्त' कहा, बल्कि प्रस्ताव पारित करने की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "बिना परामर्श और हमें बोलने का मौका दिए बिना फैसला लेना अनुचित है।"
भारत ने साफ शब्दों में कहा कि ग्लोबल साउथ के देशों की 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग के सामने 300 अरब डॉलर का यह प्रस्ताव बेहद कम है और इसे वर्तमान स्वरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
ग्लोबल साउथ का क्या है मामला?
ग्लोबल साउथ का मतलब है गरीब और विकासशील देश, जो जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े प्रभावों का सामना कर रहे हैं। इन देशों का तर्क है कि ऐतिहासिक रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए विकसित देश जिम्मेदार हैं। इसलिए, उन्हें ज्यादा फंडिंग और मदद मिलनी चाहिए।
नाइजीरिया समेत कई देशों का भारत को समर्थन
भारत के इस कड़े रुख को नाइजीरिया, मलावी और बोलीविया जैसे देशों का समर्थन भी मिला। नाइजीरिया की वार्ताकार नकिरुका मडुकेवे ने जलवायु फंडिंग पैकेज को 'मजाक' बताते हुए कहा कि यह गरीब देशों की जरूरतों को अनदेखा करता है। एलडीसी (कम विकसित देशों) के अध्यक्ष इवांस नजेवा ने भी इस प्रस्ताव को निराशाजनक करार दिया।
क्या है पेरिस समझौते का आर्टिकल 6?
कॉप-29 के समापन पर पेरिस समझौते के आर्टिकल 6 पर चर्चा पूरी हो गई। इसके तहत, उत्सर्जन कम करने वाली परियोजनाओं से उत्पन्न कार्बन क्रेडिट को एक देश से दूसरे देश को ट्रांसफर किया जा सकता है, ताकि वे अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा कर सकें।
क्या है भारत का संदेश?
भारत के इस रुख ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह ग्लोबल साउथ की जरूरतों को नजरअंदाज नहीं होने देगा। चांदनी रैना के शब्दों में, "हम चाहते हैं कि आप हमारी बात सुनें। यह फंडिंग पैकेज विकासशील देशों की प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं है।"
संयुक्त राष्ट्र के इस प्रस्ताव को खारिज करके भारत ने न केवल अपनी बात मजबूती से रखी, बल्कि बाकी विकासशील देशों को भी एकजुटता का संदेश दिया। यह विवाद दिखाता है कि जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर न्यायपूर्ण समाधान कितना कठिन है।