सुप्रीम कोर्ट के बुलडोजर एक्शन पर फैसले के बाद अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर तंज कसते हुए कहा, "अब किसी का घर नहीं टूटेगा, बुलडोजर गैराज में खड़ा रहेगा।" सुप्रीम कोर्ट ने घरों को गिराने से पहले कड़े दिशानिर्देश जारी किए हैं और मनमानी कार्रवाई पर रोक लगाई है।
नई दिल्ली/कानपुर: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि घर गिराने से पहले अधिकारियों को साबित करना होगा कि यह अंतिम उपाय था। अदालत ने घर को सम्मान की निशानी बताते हुए मनमानी कार्रवाई पर रोक लगाई और इसके लिए गाइडलाइन्स भी जारी कीं। इस फैसले पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर तंज कसा। कानपुर की एक रैली में यादव ने कहा, "जो लोग घर तोड़ना जानते हैं, उनसे आप क्या उम्मीद कर सकते हैं? अब उनका बुलडोजर गैराज में खड़ा होगा, किसी का घर नहीं टूटेगा।"
अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए इसे गरीबों के लिए राहत बताया। उन्होंने कहा कि सरकार का बुलडोजर एक्शन कई परिवारों को तबाह कर चुका है। अब कोर्ट के इस आदेश के बाद कोई भी अधिकारी मनमाने ढंग से बुलडोजर नहीं चला सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में बुलडोजर एक्शन को लेकर 15 गाइडलाइन्स जारी की हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई के मामले में देशभर के लिए एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें 15 गाइडलाइन्स जारी की गई हैं। इन गाइडलाइन्स का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी घर या संपत्ति को गिराने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए और किसी निर्दोष को अन्याय का सामना न करना पड़े। कोई भी ढांचा गिराने का आदेश पारित होने पर, मालिक को अपील करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा ताकि वह अपनी स्थिति को अदालत में प्रस्तुत कर सके। बिना अपील की गुंजाइश दिए, रातोंरात किसी परिवार को बेघर करना न केवल अमानवीय है, बल्कि कानून के विरुद्ध भी है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बिना कारण बताओ नोटिस के कोई भी ढांचा गिराया नहीं जा सकता। इस नोटिस को पंजीकृत डाक से भेजना और संरचना के बाहर चिपकाना अनिवार्य होगा, ताकि मालिक को सही तरीके से सूचित किया जा सके।
एक बार नोटिस मिल जाने के बाद, मालिक को 15 दिन का समय दिया जाएगा, जिसके बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट से संबंधित जानकारी भेजी जाएगी। ध्वस्तीकरण के मामलों में जिम्मेदारी तय करने के लिए कलेक्टर और डीएम एक नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे जो इस पूरी प्रक्रिया की देखरेख करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि नोटिस में उल्लंघन का प्रकार, सुनवाई की तारीख और किसके समक्ष सुनवाई होगी, यह सब स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाएगा। इसके अलावा, एक डिजिटल पोर्टल पर नोटिस और आदेश का पूरा विवरण उपलब्ध होगा, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
ध्वस्तीकरण से पहले प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई करेगा और इसका रिकॉर्ड रखा जाएगा। अंतिम आदेश जारी होने से पहले यह सुनिश्चित किया जाएगा कि क्या अवैध निर्माण को कानूनी रूप से समझौता किया जा सकता है या नहीं। आदेश को डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा ताकि संबंधित पक्षों को पूरी जानकारी मिल सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मालिक को आदेश के 15 दिनों के भीतर अनधिकृत ढांचे को स्वयं हटाने का अवसर दिया जाएगा, और अगर अपील में आदेश पर रोक नहीं लगाई गई है, तभी चरणबद्ध तरीके से ध्वस्तीकरण किया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जाएगी, जिसे भविष्य के लिए संरक्षित किया जाएगा और इस संबंध में रिपोर्ट नगर आयुक्त को भेजी जाएगी।
अगर कोई अधिकारी इन निर्देशों का पालन नहीं करता, तो उसके खिलाफ अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही, उस अधिकारी को अपनी लागत पर ढांचा फिर से खड़ा करने और मुआवजा देने के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाएगा। यह निर्देश सभी मुख्य सचिवों तक पहुंचाए जाएंगे, ताकि हर स्तर पर इनका पालन हो। हालांकि, यह गाइडलाइन्स सार्वजनिक भूमि पर अनधिकृत निर्माण और न्यायालय द्वारा आदेशित ध्वस्तीकरण पर लागू नहीं होंगी।
इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया है कि किसी भी व्यक्ति का घर बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के नहीं गिराया जाएगा, और इसके पीछे की मंशा में पारदर्शिता और न्याय की भावना होगी।
इस फैसले के बाद अखिलेश यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की मनमानी पर रोक लगाई है। उन्होंने इसे न्यायपालिका की महत्वपूर्ण जीत बताया।