Saturday, January 18, 2025

शिंदे की नई रणनीति: मंत्रियों से शपथपत्र लेकर दिखाया सख्त रवैया, 'काम करो या छोड़ो' नीति की घोषणा, अगला कदम क्या होगा?

New Delhi , Latest Updated On - Dec 16 2024 | 12:30:00 PM

महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंत्रियों से शपथपत्र लेने की योजना बनाई है, जिसमें वे ढाई साल बाद पार्टी छोड़ने के लिए तैयार होंगे। शिंदे की 'काम करो या छोड़ो' नीति और सत्ता वितरण की नई रणनीति से राजनीति में नया मोड़ आया है।

महाराष्ट्र में कैबिनेट विस्तार के बाद, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपनी सख्ती दिखाई है, जो प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ लेकर आई है। शिवसेना के 11 विधायकों को मंत्री बनाने के बाद, शिंदे अब अपनी टीम के लिए एक कड़ा संदेश भेजने की तैयारी कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, शिंदे जल्द ही अपने मंत्रियों से एक शपथपत्र लेंगे, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उनका कार्यकाल और वफादारी पार्टी के हित में हो।

क्या है शपथपत्र का मकसद?
शिंदे ने यह फैसला लिया है कि उनके मंत्रियों को यह शपथ लेनी होगी कि वे ढाई साल बाद पार्टी छोड़ने को तैयार रहेंगे, ताकि किसी और दावेदार को जगह मिल सके। शिंदे का यह कदम उनके नेतृत्व के प्रति अपनी पकड़ मजबूत करने का इरादा प्रतीत होता है। शिवसेना के एक वरिष्ठ मंत्री, शंभुराज देसाई ने बताया कि शपथपत्र लेने का उद्देश्य यह है कि यदि शिंदे चाहें तो किसी मंत्री को बदल सकें, और इसका आधिकारिक तौर पर समर्थन भी हो।
‘काम करो या छोड़ो’ नीति की घोषणा
शिंदे ने शिवसेना में एक नई नीति की शुरुआत की है, जिसे उन्होंने 'काम करो या छोड़ो' के रूप में पेश किया है। उनका स्पष्ट संदेश है कि जो कार्य करेगा, वही रहेगा, और जो काम में असफल रहेगा, उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। शिंदे के करीबी सहयोगियों का कहना है कि वे अब अपनी पार्टी के विधायकों की वफादारी पर ज्यादा यकीन नहीं करते, और इसलिए उन्होंने सत्ता का वितरण समान रूप से करने का फैसला किया है ताकि सभी विधायकों को संतुष्ट रखा जा सके।
विवादों के बीच मंत्री बने कुछ चेहरे
हालांकि शिंदे की यह नीति सख्त दिख रही है, लेकिन कुछ फैसले हैरान करने वाले हैं। उदाहरण के तौर पर, शिवसेना के तीन मंत्रियों – दीपक केसरकर, अब्दुल सत्तार और तानाजी सावंत – को उनके खिलाफ उठे विवादों के बावजूद मंत्री पद से नहीं हटाया गया। सूत्रों का मानना है कि यह सब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ उनकी घनिष्ठ दोस्ती के कारण हुआ। इस फैसले ने महाराष्ट्र की राजनीति में कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

क्या शिंदे का यह कदम उनकी पार्टी को एकजुट रखने में सफल होगा, या फिर यह उनके लिए नई मुश्किलों का कारण बनेगा? आने वाले दिनों में शिंदे की यह रणनीति और उनकी कठोर नीतियों का असर देखने लायक होगा।



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COMMENTS
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