दिवाली की धूम के बीच अद्वितीय परंपराइस समय देशभर में दिवाली का जश्न मनाया जा रहा है, लेकिन हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के सम्मू गांव में यह त्योहार नहीं मनाया जाता। यहां के लोग मानते हैं कि इस गांव को एक श्राप मिला है, जिसके कारण वे दिवाली का जश्न नहीं मना सकते। श्राप का इतिहासबताया जाता है कि कई दशकों पहले, एक महिला का पति राजा के दरबार में सैनिक था। दिवाली के दिन, जब वह मायके जा रही थी, उसे अपने पति की मृत्यु की खबर मिली। दुख से भरकर, उसने अपने बच्चे के साथ सती होने का फैसला किया और गांव को श्राप दिया कि यहां के लोग सात पीढ़ियों तक दिवाली नहीं मना पाएंगे। नकारात्मक परिणामगांव वाले बताते हैं कि यदि कोई दिवाली मनाने की कोशिश करता है, तो यहां आपदा आ जाती है या किसी की अकाल मृत्यु हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों में, जब कुछ परिवारों ने दिवाली मनाने का प्रयास किया, तो उनके घरों में आग लग गई या लोग बीमार हो गए। आज की स्थितिअब भी, जब दिवाली का समय आता है, तो गांव के लोगों के चेहरों पर मायूसी होती है। वे केवल सती की मूर्ति की पूजा करते हैं और दीप जलाते हैं। गांव के लोग श्राप से मुक्ति पाने के लिए कई बार यज्ञ भी करवा चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई परिणाम नहीं मिला है। युवा पीढ़ी का दृष्टिकोणहालांकि, कुछ युवा इस परंपरा को मानने के बावजूद दिवाली न मनाने का मलाल महसूस करते हैं। वे मानते हैं कि यह एक सच्ची घटना है और इसे गंभीरता से लेना चाहिए। इस अद्वितीय परंपरा के चलते, सम्मू गांव हर साल दिवाली के त्योहार को फीका ही देखता है, जबकि पूरे देश में त्योहार का जश्न धूमधाम से मनाया जा रहा है। |
COMMENTS