यूक्रेन ने रूस-यूक्रेन गैस ट्रांजिट डील को नवीनीकरण से मना कर दिया, जिसके बाद 1 जनवरी 2025 से यूरोप को गैस सप्लाई पूरी तरह से रुक गई। इस कदम से यूरोपीय देशों, खासकर ऑस्ट्रिया, स्लोवाकिया और मोल्दोवा में ऊर्जा संकट के संकेत मिल रहे हैं, जबकि रूस को भारी राजस्व का नुकसान होगा।
नई दिल्ली: न्यू ईयर के मौके पर यूक्रेन ने रूस से गैस सप्लाई को लेकर बड़ा फैसला लिया। 1 जनवरी 2025 से यूरोप को गैस की आपूर्ति पूरी तरह से रोक दी गई है, जिससे यूरोपीय देशों में भारी संकट पैदा हो सकता है। यूक्रेन ने रूस-यूक्रेन के बीच 2019 में हुई गैस ट्रांजिट डील को रिन्यू करने से मना कर दिया, और इस कदम से रूस का यूरोपीय ऊर्जा बाजार पर नियंत्रण खत्म हो गया है।
रूस की गैस सप्लाई का एक बड़ा धक्का!
यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने यूरोपीय देशों को गैस सप्लाई के लिए रूस-यूक्रेन के ट्रांजिट डील को नवीनीकरण से मना कर दिया था, उनका कहना था कि रूस को राजस्व से वंचित कर यह कदम उठाया गया ताकि रूस अपने देश के खिलाफ युद्ध फंडिंग के लिए यह पैसे इस्तेमाल न कर सके। जेलेंस्की का मानना है कि यूरोप पहले ही रूस से गैस छोड़ने का फैसला कर चुका था, और यह कदम रूस के लिए एक बड़ा नुकसान साबित होगा।
पूर्वी यूरोप में ऊर्जा संकट की आशंका
इस फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान यूरोपीय देशों को होने की संभावना है, खासकर ऑस्ट्रिया, स्लोवाकिया और मोल्दोवा जैसे देशों को, जो इस ट्रांजिट रूट पर निर्भर थे। इन देशों को रूस से गैस की आपूर्ति रोकने से ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ सकता है। ऑस्ट्रिया का अधिकांश गैस आपूर्ति यूक्रेन के रास्ते से हो रही थी, जबकि स्लोवाकिया को सालाना 3 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस इस रूट से मिल रही थी, जो उसकी सालाना मांग का दो-तिहाई था।
रूस की गैस आपूर्ति में भारी गिरावट
रूस, जो कभी यूरोप की गैस आपूर्ति का 35 प्रतिशत करता था, अब इस आपूर्ति में भारी गिरावट देखी जा रही है। 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद कई यूरोपीय देशों ने रूस से अपनी गैस आपूर्ति को कम करना शुरू कर दिया था। अब रूस का यूरोप में गैस निर्यात घटकर केवल 8 प्रतिशत रह गया है।
क्या होगा यूक्रेन को और रूस को?
यूक्रेनी GTS ऑपरेटर के पूर्व प्रमुख सेरही माकोहोन के अनुसार, रूस सालाना 5 बिलियन डॉलर कमा रहा था, जबकि इस ट्रांजिट डील से यूक्रेन को केवल 800 मिलियन डॉलर मिलते थे, जिसका अधिकांश हिस्सा ट्रांजिट पर खर्च हो जाता था। हालांकि, रूस को इससे कहीं अधिक, यानी लगभग 6.5 बिलियन डॉलर सालाना की कमाई हो रही थी।
क्या यूक्रेन का कदम सही था?
यूक्रेन के इस फैसले ने यूरोपीय यूनियन के ऊर्जा बाजार में रूस का वर्चस्व तो खत्म कर दिया है, लेकिन पूर्वी यूरोप में ऊर्जा संकट की गंभीर संभावना को जन्म दे दिया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या यूक्रेन का यह कदम आर्थिक रूप से सही था या यूरोप को ऊर्जा संकट में धकेलने का कारण बनेगा। आगे क्या होगा, यह पूरी दुनिया के लिए एक अहम सवाल बन चुका है।