ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी एक बार फिर विवादों में घिर गई है। पिछले कुछ वर्षों में जहां अथॉरिटी से जुड़े कई घोटाले और आरोप सामने आए हैं, वहीं अब एक नई चिंता ने अधिकारियों की कार्यप्रणाली और प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
एक बार फिर ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी चर्चा में है—और इस बार वजह है, एक अथॉरिटी में वर्षों से जमे बैठे कर्मचारी, जिनकी स्थायी तैनाती अब गंभीर सवालों को जन्म दे रही है। कई कर्मचारी ऐसे हैं जो 10 से लेकर 20 वर्षों तक एक ही वर्क सर्किल और एक ही पद पर कार्यरत हैं, जो न सिर्फ नियमों की सीधी अनदेखी है, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना पर भी चोट है।
तीन साल की सीमा, लेकिन 20 साल तक की पोस्टिंग!
भारत सरकार और उत्तर प्रदेश प्रशासनिक सेवा नियमों के मुताबिक, किसी भी कर्मचारी को एक ही पद या स्थान पर अधिकतम तीन साल तक ही तैनात रखा जा सकता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी कर्मचारी के पास इतना समय न हो कि वह वहां स्थायी नेटवर्क या निजी हित बना ले। यह नियम पारदर्शिता और जवाबदेही को कायम रखने के लिए जरूरी माने जाते हैं।
लेकिन ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में इस नियम को शायद कानूनी दस्तावेज़ों तक ही सीमित रखा गया है। विश्वस्त स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर, कुछ कर्मचारियों की सूची सामने आई है जो एक ही अथॉरिटी एक ही पद या सर्किल में 10 से 20 वर्षों से कार्यरत हैं। इससे यह सवाल उठता है—क्या अथॉरिटी के भीतर कोई ‘सेटिंग सिस्टम’ चल रहा है?
वर्षों से जमे कर्मचारियों की सूची
जिन कर्मचारियों के नाम सामने आए हैं, वे निम्नलिखित हैं:
गजेन्द्र कुमार ,निजी सहायक (वर्क सर्किल-2)
सुरेन्द्र दत्ता, निजी सहायक (G.M. project)
अमित कुमार,निजी सहायक (वर्क सर्किल-4)
सतेंद्र शर्मा , निजी सहायक (वर्क सर्किल-3)
दिनेश कुमार, निजी सहायक (वर्क सर्किल-1)
ऋतुराज भारती,निजी सहायक (वर्क सर्किल-5)
देवेंद्र मोटला ,प्रबन्धक (टेन्डर सेल)
भानु प्रताप, निजी सहायक (टेन्डर सेल)
इन कर्मचारियों की निरंतर तैनाती ने अब यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अथॉरिटी के अंदरूनी तंत्र में पारदर्शिता खत्म हो गई है?
यह महज़ संयोग नहीं, बल्कि सिस्टम की खामी?
जब किसी एक अथॉरिटी में एक से अधिक कर्मचारी 10–20 वर्षों तक एक ही पद या सर्किल में बने रहते हैं, तो इसे केवल 'संयोग' नहीं कहा जा सकता। यह एक व्यवस्थित प्रणाली की ओर इशारा करता है, जिसे अब ‘सेटिंग सिस्टम’ की संज्ञा दी जा रही है—जहां कर्मचारियों और उनके कथित संरक्षकों के बीच मिलीभगत से पोस्टिंग तय होती है, नियमों को ताक पर रखकर।
इसमें कई आशंकाएं उठ रही हैं:
• क्या इन कर्मचारियों को राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है?
• क्या विभागीय स्थानांतरण प्रणाली निष्क्रिय या पक्षपाती है?
• क्या अथॉरिटी में पद और स्थान खरीद-फरोख्त की प्रणाली मौजूद है?
• क्या इससे अथॉरिटी के कामकाज में निष्पक्षता समाप्त हो चुकी है?
ट्रांसफर पॉलिसी सिर्फ कागजों में?
यह पूरा मामला इस बात की पुष्टि करता है कि अथॉरिटी के भीतर ट्रांसफर पॉलिसी महज़ दिखावे की बनकर रह गई है। न कोई नियमित समीक्षा, न कोई नियमों का अनुपालन—ऐसे में भ्रष्टाचार और निजी हितों की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
यदि ट्रांसफर की पारदर्शी प्रणाली होती, तो कोई भी कर्मचारी लगातार 10–20 वर्षों तक एक ही सर्किल में कार्यरत नहीं रह सकता था। इसीलिए अब लोकतांत्रिक संस्थानों और जांच एजेंसियों को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।
Bharat News 360 TV की विशेष पड़ताल जारी
हमारी खोजी पत्रकारिता टीम इस पूरे मामले की गहराई से पड़ताल कर रही है। विश्वस्त स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर हम बहुत जल्द एक विस्तृत रिपोर्ट लेकर आएंगे। इस रिपोर्ट का उद्देश्य केवल खुलासा करना नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित करना भी है।
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