Tuesday, June 17, 2025

सुप्रीम कोर्ट का क्रांतिकारी आदेश: एनजीटी बार चुनाव में महिला वकीलों के लिए 33% आरक्षण, एक नई दिशा!

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: एनजीटी चुनाव में महिला वकीलों के लिए 33% आरक्षण।

Bahrampur , Latest Updated On - Jan 20 2025 | 08:30:00 AM
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सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय में महिला वकीलों के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर एक बड़ा कदम उठाया है। सोमवार को कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) बार एसोसिएशन चुनाव में महिला वकीलों के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का आदेश दिया। यह निर्णय दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के चुनाव में पहले से लागू आरक्षण प्रणाली के समान है और इसका उद्देश्य महिला वकीलों को न्यायपालिका में समान अवसर प्रदान करना है।

जस्टिस सूर्यकांत और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस फैसले में कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय और जिला बार एसोसिएशन के चुनावों में महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित पदों के संबंध में जो निर्देश दिए गए थे, वही एनजीटी बार एसोसिएशन पर भी लागू होंगे। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि एनजीटी चुनाव के दौरान महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का पालन सुनिश्चित किया जाएगा।

दिल्ली बार काउंसिल को एक महत्वपूर्ण छूट देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एनजीटी बार एसोसिएशन के चुनाव में मतदान करने के लिए वकीलों को दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होगी। कोर्ट ने कहा, "एनजीटी बार एसोसिएशन में देशभर के वकील शामिल होते हैं, और इस चुनाव में केवल दिल्ली बार काउंसिल के पंजीकृत वकीलों से वोट लेने की आवश्यकता नहीं है।"

यह निर्णय एक बड़े बदलाव का प्रतीक है, क्योंकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन में महिला वकीलों के लिए तीन पदों और कार्यकारी समिति में 30 प्रतिशत सीटों के आरक्षण का आदेश दिया था। इसके अतिरिक्त, महिला वकीलों को कोषाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी प्रतिनिधित्व देने की दिशा में पहल की गई थी।

यह कदम महिलाओं के लिए एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है, जो पुरुष प्रधान न्यायिक क्षेत्र में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। एनजीटी बार एसोसिएशन चुनाव में आरक्षण का यह फैसला अदालत के मौजूदा रुझानों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जो महिलाओं के समग्र सशक्तिकरण की ओर अग्रसर है।

महिला वकीलों के लिए यह आरक्षण केवल उनके अधिकारों का विस्तार नहीं, बल्कि न्यायपालिका में उनके योगदान को भी स्वीकारने का एक अहम प्रयास है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले के बाद अन्य बार एसोसिएशनों में भी क्या बदलाव आते हैं।

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