दिल्ली में 05 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इस बार चुनावी समर में सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है—रेवड़ी संस्कृति। हर राजनीतिक दल अपनी ओर से फ्री योजनाओं के वादे कर रहा है, लेकिन इस चुनाव में एक दिलचस्प सवाल उठ रहा है—क्या अब मुख्यमंत्री चेहरे की अहमियत चुनावों में कम होती जा रही है? दिल्ली चुनाव में सभी पार्टियां रेवड़ी की बरसात कर रही हैं, लेकिन क्या यही रेवड़ी का मुद्दा हर बार चेहरे से भारी पड़ जाएगा?
चुनाव में चेहरा या मुद्दा?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार तीन प्रमुख राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। वहीं, एक बार फिर से यह सवाल उठ रहा है कि क्या मुख्यमंत्री चेहरा चुनाव में अहम भूमिका निभाएगा या फिर रेवड़ी की संस्कृति ही निर्णायक साबित होगी? कर्नाटक से लेकर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तक, हालिया चुनावों ने यह साबित किया है कि कई बार मुद्दा चेहरे से भारी पड़ता है। बीजेपी का मानना है कि राजनीति में प्रयोग अहम है और मुख्यमंत्री चेहरे का चुनाव भी परिस्थिति और रणनीति के हिसाब से किया जाता है।
राष्ट्रीय स्तर पर मोदी का दबदबा
राष्ट्रीय राजनीति की बात करें तो 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक, नरेंद्र मोदी का चेहरा ही मुख्य मुद्दा बना। 2014 में मनमोहन सिंह और मोदी का सीधा मुकाबला था, और बाद के चुनावों में मोदी की लोकप्रियता के सामने विपक्ष के किसी भी चेहरे की कोई अहमियत नहीं रही। यहां तक कि 2024 में भी विपक्ष द्वारा रेवड़ी की भरमार के बावजूद बीजेपी ने सहयोगी दलों के साथ फिर से बहुमत प्राप्त किया, जो मोदी के चेहरे की ताकत का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
दिल्ली में केजरीवाल का दबदबा
दिल्ली की बात करें तो पिछले तीन विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल का चेहरा ही आम आदमी पार्टी का सबसे मजबूत पक्ष रहा है। उनका कद पार्टी से भी बड़ा दिखा है और उन्होंने एक प्रभावी नेतृत्व प्रदान किया है। इस बार कांग्रेस और बीजेपी भी रेवड़ी की पिच पर उतर चुके हैं, जहां पहले सिर्फ आम आदमी पार्टी का एकमात्र दबदबा था। हालांकि, बीजेपी अब भी केजरीवाल से मुकाबला करने के लिए किसी मजबूत चेहरे की तलाश में है, लेकिन फिलहाल ऐसा कोई चेहरा सामने नहीं आया है।
बीजेपी की रणनीति: मोदी की गारंटी
दिल्ली में बीजेपी के पास कोई स्पष्ट और लोकप्रिय मुख्यमंत्री चेहरा नहीं है, जैसा कि 1998 से सत्ता से बाहर रही दिल्ली बीजेपी में देखा गया है। विजय कुमार मल्होत्रा, हर्षवर्धन, किरण बेदी जैसे चेहरे पहले भी फेल हो चुके हैं। इस बार बीजेपी की रणनीति वही है, जो अन्य राज्यों में सफल रही है। यानी, मोदी की गारंटी के माध्यम से रेवड़ी के वादों का प्रचार किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले ही यह घोषणा कर दी है कि दिल्लीवासियों को मिल रही मुफ्त सेवाएं जारी रहेंगी।
हालांकि, बीजेपी के अंदर यह सवाल भी उठ रहा है कि दिल्ली में सर्वमान्य और लोकप्रिय मुख्यमंत्री चेहरा न होने की स्थिति में, क्या रेवड़ी के वादे ही चुनाव में निर्णायक साबित होंगे?
क्या रेवड़ी की आंधी चेहरा हरा पाएगी?
यह सवाल अब दिल्ली के चुनावी रणक्षेत्र में सबसे अहम बन चुका है—क्या रेवड़ी की आंधी मुख्यमंत्री चेहरे को हरा पाएगी? चुनाव की बारीकियां और रणनीतियां क्या तय करेंगी कि इस बार जनता किसे चुनने का फैसला करेगी? दिल्ली में 5 फरवरी को होने वाली चुनावी जंग में यह सब तय होगा!
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