वर्ष 2024 के सत्ता संग्राम के बाद राज्यभिषेक के लिए कौन चयनित होगा, इसका सटीक पूर्वानुमान सम्भव नहीं है ? कारण स्पष्ट है, मनुष्य के भाग्य में क्या लिखा है, इसको ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं जानता। वाल्मीकि रामायण में वर्णित मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के सिंहासन पर विराजमान होने से पूर्व उनको 14 वर्ष के कठोर वनवास के लिए प्रस्थान किया जाना, निश्चितः उनकी नियति का ही परिणाम था। आज सम्पूर्ण देश में भावी लोकसभा चुनाव के पश्चात सत्ता का ताज मोदी अथवा योगी किसके मस्तिष्क पर सुशोभित होगा, यह यक्ष प्रश्न भारतीय जनमानस को उद्वेलित कर रहा है।
मोदी जी 75 वर्ष की अवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं। उनसे आशा थी कि वे शीघ्र ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ जी अथवा अमित शाह जी को घोषित करेंगे, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तराधिकारी चयनित किए जाने के सन्दर्भ में भाजपा के मध्य आन्तरिक अंतर्विरोध शनै-शनै प्रकट होने लगा है। इसका साक्ष्य यह है कि जब प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया आरम्भ हुई, तब शीर्ष नेतृत्व ने राजपूतों की थोड़ी अनदेखी की। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सम्पन्न हुए राजपूत सम्मेलनो में यह सामूहिक चर्चा का विषय रहा। राजपूत समाज में यह धारणा बन रही है कि मध्य प्रदेश से शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान से वसुन्धरा राजे सिंधिया, छत्तीसगढ़ से रमन सिंह को राजनीतिक कर्म से मुख्यमंत्री के रूप में चयनित नहीं किया गया। भाजपा ने उन्हें हास्य पर भी डाल दिया है। राजपूत समाज को लगता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय और यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी भाजपा की राजनीति में किनारे किया जा सकता है। इस तथ्य में कितनी सच्चाई है, इसको प्रमाणित नहीं किया जा सकता। परन्तु, इस चर्चा मात्र से ही आज समस्त राजपूत समाज आक्रोश में है।
राजपूत, जो स्वयं को भगवान श्री राम के वंशज मानते हैं। राजपूत महिलाओं के सती होने, एक राजपूत का अपने वचन पर अडिग रहकर ‘प्राण जाए पर वचन न जाए‘ आदि गाथाओं को राजपूत बालक जन्म से सुनता रहा है, ऐसे में राजपूत समाज सजातीय उम्मीदवारों/प्रमुख नेताओं के चयनित न किये जाने पर इसको श्री राम का अनादर मानने लगे हैं। इस से उनके मस्तिष्क में यह पूर्वाभास बन गया है कि यह चयन प्रक्रिया पूर्व नियोजित है तथा योगी आदित्यनाथ जी की प्रधानमंत्री पद की सम्भावना को समाप्त करने के लिए किया जा रहा है। इस घटना से आज सम्पूर्ण राजपूत समाज ने भाजपा के विरोध में यह नारा देना प्रारम्भ कर दिया है कि ‘‘मोदी 300 के पार तो योगी बाहर‘‘। इस नारे का प्रभाव प्रत्येक राजपूत के हृदय में एक अमिट छाप बना चुका है। अब उनका अनुमान है कि एनडीए को 225 से अधिक सीटें प्राप्त नहीं होगीं, क्योंकि जब सरकार बनाने का अवसर आएगा तो इंडिया गठबंधन की छोटी-छोटी पार्टियां एवं निर्दलीय सम्भवतया मोदी जी को सहयोग न करें, परन्तु योगी जी के नाम पर अवश्य ही सहयोग करने के लिए तत्पर होंगे। अभी निश्चित रूप से यह कहना कठिन होगा कि इस आन्दोलन को पार्टी के किन-किन बड़े नेताओं का सहयोग प्राप्त है। परन्तु इतना अवश्य स्पष्ट है कि सम्पूर्ण भारत के राजपूत नेता इस आन्दोंलन में सम्मिलित हो गए हैं और यह आन्दोलन वृहद रूप में व्याप्त होता जा रहा है।
भाजपा के अधिकतर जाट नेता रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को सहयोगी बनाने के कारण पहले से ही विरोध प्रकट कर रहे हैं। ऐसी उहापोह की स्थिति में राजनीति क्या करवट लेगी और 1½ माह पश्चात ताज मोदी अथवा योगी, किसके मस्तिष्क पर सुशोभित होगा यह निश्चित रूप से कहना अभी कठिन है। वर्तमान समय में योगी जी अपनी लोकप्रियता तथा मोदी जी की वयवृद्ध अवस्था के कारण भावी प्रधानमंत्री पद हेतु प्रबल तथा उपयुक्त व्यक्तित्व के रूप में प्रकट हो रहे हैं। सम्पूर्ण देश में उनके पक्षधरों की सहमति भी दृष्टिगोचर हो रही है। अब विचारणीय विषय यह है कि इस राजनैतिक घटनाक्रम में संघ की क्या भूमिका होगी? अभी संघ ने स्वयं को इस विषय से विरत किया हुआ है। अब यह राजनैतिक विषय मात्र एनडीए से सम्बद्ध प्रश्न नहीं रहा है, अपितु यह समस्त राष्ट्र केन्द्रित विषय बन चुका है। इसलिए संघ को भी राजनैतिक परिस्थिति का पूर्ण आंकलन करने के पश्चात अपना निर्णय देना होगा।
योगेश मोहन
( वरिष्ठ पत्रकार और IIMT यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति )