नोएडा प्राधिकरण में कॉन्ट्रैक्चुअल पर नियुक्त JE द्वारा Measurement Book (MB) फाइलों पर हस्ताक्षर करने का मामला सामने आया है। जबकि सेवा नियमावली और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश स्पष्ट करते हैं कि संविदा कर्मचारी ऐसे फैसलों के लिए अधिकृत नहीं होते। सवाल उठता है क्या नोएडा में नियमों को जानबूझकर तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है?
जो शहर खुद को "स्मार्ट सिटी" कहने से नहीं चूकता, वहीं नोएडा प्राधिकरण की प्रशासनिक कार्यप्रणाली अब कटघरे में है। खुलासा हुआ है कि यहां कांट्रैक्ट पर नियुक्त जूनियर इंजीनियर (JE) न केवल जिम्मेदार पदों पर कार्यरत हैं, बल्कि "एमबी फाइल" (Measurement Book) जैसे संवेदनशील दस्तावेजों पर हस्ताक्षर भी कर रहे हैं जो किसी प्रोजेक्ट की पूर्ति और भुगतान का प्रमाण होते हैं।
यह तब और चौंकाने वाला हो जाता है जब ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण जैसे अन्य सरकारी संस्थानों में कांट्रैक्ट कर्मचारियों को केवल तकनीकी सहायक की भूमिका तक सीमित रखा गया है। ना हस्ताक्षर का अधिकार, ना निर्णय लेने की शक्ति।

सवाल उठता है कि जब उत्तर प्रदेश सरकार की सेवा नियमावली, DOPT और सुप्रीम कोर्ट तक यह स्पष्ट कर चुके हैं कि कांट्रैक्ट कर्मचारी निर्णयात्मक कार्य नहीं कर सकते, तो नोएडा प्राधिकरण में यह छूट क्यों दी जा रही है?
क्या यह नियमों की 'तोड़फोड़' एक सोची-समझी साज़िश है, जहां मनचाहे लोगों को संवेदनशील ज़िम्मेदारियों से नवाज़ा जा रहा है? और कल यदि इन प्रोजेक्ट्स में घोटाले सामने आते हैं, तो जवाबदेही किसकी होगी?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पारदर्शिता की नीति क्या नोएडा प्राधिकरण तक नहीं पहुंच पाई? यह अब केवल एक शहर का मुद्दा नहीं, बल्कि प्रशासनिक नैतिकता पर गंभीर प्रश्न है।
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