पानीपत की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने आसाराम बापू से जुड़े कथित हमले के पुराने मामले में एक अहम फैसला सुनाते हुए शिकायतकर्ता महेंद्र चावला के रवैये पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने कहा कि चावला और उनके वकील ने न तो पुलिस की रिपोर्ट पर आपत्ति की और न ही केस को आगे बढ़ाने की कोई कोशिश दिखाई। अदालत ने टिप्पणी की कि शिकायतकर्ता की निष्क्रियता के कारण 10 साल पुराना मामला बिना किसी वजह के लंबा खिंचता रहा और ऐसा लगता है कि उनका उद्देश्य केवल मुकदमे को लटकाना ही था।
इससे पहले 5 फरवरी 2025 को सेशन जज अम्बरदीप सिंह की अदालत भी पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट सही मान चुकी थी। उस समय कोर्ट ने साफ कहा था कि महेंद्र चावला पर हुए कथित हमले में आसाराम बापू की कोई भूमिका नहीं है और उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलता। बाकी तीन आरोपियों—हनुमान, सुरेंद्र और राजेंद्र—के मामले मजिस्ट्रेट कोर्ट को भेजे गए थे।
इसके बाद चावला और उनके भाई देवेंद्र ने फिर से आवेदन देकर मांग की कि क्राइम ब्रांच दोबारा जांच कर आसाराम बापू को आरोपी बनाए। लेकिन क्राइम ब्रांच ने 16 सितंबर 2025 को कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल करते हुए साफ कहा कि आसाराम बापू के खिलाफ कोई भी साक्ष्य नहीं है। शिकायतकर्ता ने इस रिपोर्ट पर कोई विरोध याचिका भी दायर नहीं की, न ही किसी स्तर पर कोई आपत्ति उठाई। अदालत ने माना कि जांच रिपोर्ट तथ्यों पर आधारित है और इसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।
कोर्ट ने पुलिस की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए कहा कि आसाराम बापू के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनता और केस को आगे की सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय भेज दिया, जहाँ अन्य आरोपियों पर पहले से ट्रायल चल रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि बिना किसी वास्तविक कारण के मामले को लंबित रखना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जिससे महेंद्र चावला की नीयत पर गंभीर सवाल उठते हैं।


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