सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार पर शराबबंदी मामलों में विशेष अदालतों के गठन में हो रही देरी को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि जब तक इन अदालतों के लिए बुनियादी ढांचा तैयार नहीं होता, तब तक शराबबंदी के आरोपितों को जमानत पर रिहा किया जाए। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने बिहार सरकार को एक हफ्ते का समय दिया है, ताकि वह इस मामले में आवश्यक कदम उठाए और अदालतों के गठन के लिए उचित दिशा-निर्देश प्राप्त करे। कोर्ट ने लंबित मामलों की बढ़ती संख्या और न्यायपालिका पर दबाव का हवाला देते हुए राज्य सरकार से सवाल किया कि क्यों न सरकारी भवनों का इस्तेमाल विशेष अदालतों के गठन के लिए किया जाए।
बिहार में शराबबंदी कानून के तहत विशेष अदालतों के गठन में हो रही देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कड़ा रुख अपनाया। अदालत ने राज्य सरकार से सवाल किया कि जब तक आवश्यक बुनियादी ढांचा तैयार नहीं हो जाता, तब तक क्यों न शराबबंदी के मामलों में गिरफ्तार सभी आरोपितों को जमानत दे दी जाए? कोर्ट ने कहा, "यह स्थिति बेहद गंभीर है।" जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान बिहार सरकार को जमकर लताड़ा और सवाल उठाया कि जब तक विशेष अदालतों का गठन नहीं हो पाता, तब तक क्यों न आरोपितों को राहत दी जाए?
क्या है मामला?
2016 में बिहार में शराबबंदी कानून लागू किया गया था, लेकिन आज तक राज्य सरकार ने शराबबंदी मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे को तैयार नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के वकील से पूछा, "जब तक इन अदालतों का निर्माण नहीं होता, तब तक के लिए क्या गिरफ्तार किए गए आरोपितों को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता?" कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि राज्य सरकार सरकारी भवनों को खाली कर इन विशेष अदालतों के गठन के लिए इस्तेमाल क्यों नहीं करती?
न्यायपालिका पर बढ़ता दबाव: सुप्रीम कोर्ट की चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लंबित मामलों का बोझ न्यायपालिका पर बढ़ता जा रहा है। कोर्ट ने आंकड़े पेश करते हुए बताया कि बिहार में 3.78 लाख से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ 4,000 मामलों का ही निस्तारण किया गया है। यह स्थिति न्यायिक प्रणाली के लिए बेहद चिंताजनक है। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार बिना ठोस योजना और न्यायिक ढांचे को समझे कानून लागू करती है, जो बाद में समस्याओं का कारण बनता है।
बिहार सरकार को एक हफ्ते का अल्टीमेटम
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को एक हफ्ते का समय दिया और कहा कि वह इस मामले में जरूरी निर्देशों के लिए राज्य सरकार से जानकारी प्राप्त करे। खासतौर पर यह देखा जाए कि शराबबंदी कानून के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को सजा देने की शक्ति के संबंध में पटना उच्च न्यायालय की आपत्ति का समाधान कैसे किया जा सकता है।
आगे क्या होगा?
बिहार में शराबबंदी कानून के तहत गिरफ्तार किए गए हजारों आरोपितों की जमानत की मांग अब एक गंभीर सवाल बन चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को लेकर बिहार सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं, और इस बात का इंतजार है कि अगले हफ्ते तक क्या कदम उठाए जाते हैं। इस पूरे प्रकरण ने राज्य सरकार और न्यायिक व्यवस्था के बीच खींचतान की तस्वीर को उजागर किया है, और अब सबकी नजरें इस पर टिकी हुई हैं कि सरकार अपनी नाकामी को कैसे सुधारती है।
क्या बिहार सरकार जमानत पर राहत देगी या और समय लेगी?
यह सवाल अब सबकी जुबान पर है, क्योंकि राज्य में शराबबंदी कानून को लागू करने के बावजूद बुनियादी ढांचे के अभाव में गिरफ्तारी के बाद आरोपी को न्याय मिलना मुश्किल हो गया है। सुप्रीम कोर्ट की कड़ी नाराजगी के बाद बिहार सरकार पर दबाव बढ़ गया है कि वह जल्दी से जल्दी विशेष अदालतों का गठन करे और राज्य में शांति बनाए रखे।
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