सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडर्स की सुरक्षा के लिए केंद्र से विशेष दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया, जिसमें सार्वजनिक परिवहन में सुरक्षा, पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध और बलात्कार के दोषियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की मांग की गई है।
आज, जब निर्भया सामूहिक बलात्कार की घटना की 12वीं वर्षगांठ है, सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं और कमजोर वर्गों की सुरक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। कोर्ट ने केंद्र सरकार से समाज में सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए कठोर दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया है। यह कदम सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं की सुरक्षा और पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली याचिका के संदर्भ में उठाया गया है।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, "आज का दिन हमें निर्भया की याद दिलाता है, जिसने न केवल देशभर में महिला सुरक्षा के मुद्दे को जागरूक किया, बल्कि समग्र समाज में बदलाव की आवश्यकता को भी उजागर किया।" याचिका में बलात्कार के दोषियों को रासायनिक नसबंदी की सजा, सार्वजनिक परिवहन में सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन, और पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर गंभीरता से विचार करते हुए केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से जवाब मांगा है और अटॉर्नी जनरल से भी मार्गदर्शन की अपील की है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा, "इन निर्देशों में कुछ पहलू बेहद चुनौतीपूर्ण हैं, लेकिन हम इस मामले में सख्त कदम उठाने को तैयार हैं।"
इतना ही नहीं, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सार्वजनिक परिवहन जैसे बसों, ट्रेनों, हवाई अड्डों, और एयरलाइनों में महिलाओं और ट्रांसजेंडरों के लिए सामाजिक व्यवहार पर एक संहिता तैयार करना न केवल जरूरी है, बल्कि इसे सख्ती से लागू भी किया जाना चाहिए। विमानों में हुए असमाजिक व्यवहार की घटनाएं इसका सटीक उदाहरण हैं, जो दर्शाती हैं कि हमें इन निर्देशों की कितनी आवश्यकता है।
यह जनहित याचिका महालक्ष्मी पावनी द्वारा दायर की गई है, जो एक वरिष्ठ महिला वकील हैं। उनका कहना है कि समाज में बढ़ती यौन हिंसा को रोकने के लिए कठोर दंडात्मक उपायों की जरूरत है। उनके अनुसार, "हमारे देश में यौन हिंसा के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है, और राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी कदम उठाने का समय अब आ चुका है।"
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है, और मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2025 में होगी। यह एक निर्णायक पल हो सकता है, जब भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक नया अध्याय लिखा जाएगा।