हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू की सरकार को बड़ा झटका देते हुए सभी छह मुख्य संसदीय सचिवों को असंवैधानिक करार देते हुए पद से हटाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने 2006 के CPS एक्ट को निरस्त कर दिया और इन सचिवों की सभी सुविधाएं तुरंत वापस लेने के निर्देश दिए हैं। सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का इरादा रखती है।
शिमला/हिमाचल प्रदेश: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार को बड़ा झटका दिया है। उच्च न्यायालय ने राज्य के छह मुख्य संसदीय सचिवों (CPS) की नियुक्तियों को असंवैधानिक करार देते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से पद छोड़ने के आदेश दिए हैं। यह फैसला हिमाचल प्रदेश के विधायकों द्वारा किए गए एक याचिका के आधार पर आया है, जिसमें इन छह प्रमुख विधायकों की नियुक्ति को चुनौती दी गई थी।
न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र ने इस मामले की सुनवाई के दौरान निर्णय सुनाया कि 2006 का संसदीय सचिव एक्ट (CPS Act) असंवैधानिक है और इसके तहत की गई सभी नियुक्तियाँ अवैध मानी जाती हैं। अदालत ने साफ किया कि विधायकों को पब्लिक ऑफिस का दुरुपयोग करने का अधिकार नहीं है, और इसलिए ये नियुक्तियाँ संविधान के खिलाफ हैं।
CPS की नियुक्ति और एक्ट को असंवैधानिक करार देना
यह मामला भाजपा विधायक सतपाल सिंह सत्ती और अन्य 11 विधायकों द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान उठाया गया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री सुक्खू ने इस एक्ट के तहत नियुक्तियों की प्रक्रिया में संवैधानिक सीमा का उल्लंघन किया था। अदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए CPS की नियुक्तियों को रद्द कर दिया।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि इन सभी मुख्य संसदीय सचिवों को मिलने वाली सभी सुविधाओं और विशेषाधिकारों को तुरंत वापस लिया जाए। इसके साथ ही अदालत ने 2006 के संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ता, शक्तियां, विशेषाधिकार और संशोधन) अधिनियम को शून्य घोषित कर दिया, जिससे इन पदों पर नियुक्तियाँ अब कानूनी रूप से अवैध हो गईं।
मुख्य संसदीय सचिवों को तत्काल प्रभाव से हटाने का आदेश
हिमाचल प्रदेश सरकार ने जिन छह मुख्य संसदीय सचिवों को नियुक्त किया था, वे अब तत्काल प्रभाव से अपने पदों से हट जाएंगे। यह छह मुख्य संसदीय सचिव थे:
- संजय अवस्थी (अर्की विधानसभा)
- सुंदर सिंह ठाकुर (कुल्लू)
- आशीष बुटेल (पालमपुर)
- किशोरी लाल (बैजनाथ)
- मोहन लाल ब्राक्टा (रोहड़ू)
- राम कुमार (दून)
इन सभी प्रमुख विधायकों को अब अपने पदों और सरकारी सुविधाओं को छोड़ने का आदेश दिया गया है। हालांकि, अदालत ने इन विधायकों की विधानसभा सदस्यता को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की, जिससे उनकी सदस्यता पर कोई असर नहीं पड़ेगा और वे विधानसभा के सदस्य बने रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का इरादा
हिमाचल प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता अनूप कुमार रतन ने बताया कि उच्च न्यायालय के फैसले को राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। उनका कहना था कि यह फैसला सरकार और इन नियुक्तियों के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन वे इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का अधिकार रखते हैं।
इसके अलावा, इन छह प्रमुख संसदीय सचिवों के व्यक्तिगत रूप से भी इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने की संभावना है।
विपक्ष ने फैसले का स्वागत किया
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने हिमाचल हाईकोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे न्यायपालिका की बड़ी जीत और सरकार के तानाशाही फैसलों के खिलाफ महत्वपूर्ण कदम बताया है। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा इस नियुक्ति को असंवैधानिक बताया था, और 2017 में भी भाजपा की सरकार ने इसे लागू करने से मना कर दिया था।
उन्होंने कहा, "जब हम सरकार में थे, तब इस विषय पर भी चर्चा हुई थी और हमने इसे पूरी तरह असंवैधानिक बताते हुए इन नियुक्तियों को रोक दिया था। आज हाईकोर्ट ने वही फैसला किया है और हम इसका स्वागत करते हैं।"
मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर राजनीतिक विवाद
मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति का मुद्दा लंबे समय से हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक विवाद का विषय रहा है। भाजपा ने इस व्यवस्था को हमेशा संविधान विरोधी और सरकारी खर्चे पर एक नाजायज तरीके से राजनीतिक लाभ हासिल करने का तरीका बताया है।
हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर से इन छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति जनवरी 2023 में हुई थी, जब मुख्यमंत्री सुक्खू ने अपने मंत्रिमंडल में विस्तार किया था। सरकार ने इन नियुक्तियों को वैध ठहराया था, लेकिन विपक्ष ने हमेशा इसे कानूनी रूप से चुनौती दी थी, और अब हाईकोर्ट का फैसला भाजपा की दलील के पक्ष में आया है।
आने वाले दिन राजनीति में और उठ सकते हैं विवाद
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला राज्य की राजनीति में और विवाद पैदा कर सकता है। एक ओर जहां विपक्ष इस फैसले को सरकार के खिलाफ जीत के तौर पर देख रहा है, वहीं सरकार इस फैसले को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय जाने की तैयारी कर रही है।
इस फैसले के बाद, हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुक्खू की सरकार के खिलाफ राजनीतिक रैलियां और विरोध प्रदर्शन और भी तेज हो सकते हैं। साथ ही, इस मुद्दे पर आने वाले समय में राजनीति में और उथल-पुथल की संभावना है।
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