मुझे आश्चर्य है कि हमारे कांग्रेस के साथियों को इतना बड़ा ओबीसी नजर नहीं आता... कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में अपनी ओर इशारा करते हुए यह बात कही थी. यह एक लाइन ही यह बताने के लिए काफी है कि लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीति किस तरह ओबीसी वोटरों को लुभाने पर केंद्रित हो गई है। कांग्रेस सवाल उठा रही है कि कितने ओबीसी सरकार में ऊंचे पदों पर हैं. राहुल गांधी यात्रा के दौरान लोगों से यही बात दोहरा रहे हैं. अब अगर सपा के लोकसभा उम्मीदवारों की सूची पर नजर डालें तो इसका फोकस भी समझा जा सकता है.
जी हां, लोकसभा चुनाव में सपा ने ओबीसी कार्ड खेला है. अखिलेश यादव पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक फॉर्मूले की बात कर रहे हैं, लेकिन उम्मीदवारों की सूची पर नजर डालें तो साफ हो जाता है कि उनका पूरा फोकस ओबीसी वोटों पर है. ये ओबीसी बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक है. सपा ने ठाकुर, दलित और मुस्लिम उम्मीदवारों के अलावा जाट, मौर्य, पटेल और वर्मा को भी टिकट दिया है. ये तो सिर्फ शुरुआत है, अभी 27 टिकटों की घोषणा हुई है.
27 में से 15 ओबीसी
जी हां, सपा ने अब तक कुल 27 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. दूसरी सूची में 11 में से 4 गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवार शामिल हैं. पहली सूची में 16 में से 8 गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवार उतारे गए. इस तरह अब तक सामने आए 27 उम्मीदवारों में से कुल 15 ओबीसी समुदाय से हैं.
यादव मेरे साथ हैं लेकिन...
कभी सपा को केवल यादवों से जोड़कर देखा जाता था। वह सपा-बसपा का जमाना था. आज जब बीजेपी ओबीसी में पिछड़े समुदाय पर निशाना साध रही है तो एसपी ने यूपी के करीब 11 फीसदी यादव और ओबीसी के एक बड़े तबके को अपने साथ शामिल करने की कोशिश शुरू कर दी है. 24 साल पहले आई एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में ओबीसी आबादी 54 फीसदी है.
बीजेपी की रणनीति
हाल ही में जब बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा हुई तो इसे बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक माना गया. सीएम नीतीश कुमार बने रहे लेकिन वहां बीजेपी सत्ता में आ गई. इसका असर लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है. राहुल गांधी 'न्याय यात्रा' लेकर निकले हैं और हर सभा में जातीय जनगणना की बात कर रहे हैं. ऐसे में संसद में बोलते हुए पीएम मोदी ने ओबीसी समुदाय का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने ओबीसी समुदाय के साथ अन्याय किया. उन्होंने ओबीसी नेताओं का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कर्पूरी ठाकुर का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा, याद कीजिए अति पिछड़े ओबीसी समुदाय के उस महापुरुष के साथ कैसा व्यवहार किया गया था.
आधी आबादी ओबीसी!
ऐसे में यह समझना जरूरी है कि चुनाव ओबीसी वोटरों पर केंद्रित क्यों नजर आ रहा है? दरअसल, ओबीसी समुदाय देश की आबादी का करीब 52 फीसदी हिस्सा है. ऐसे में यह वोट बैंक जिस तरफ भी झुकेगा, उसकी जीत पक्की होगी. हालाँकि इसमें भी दो खंड हैं. एक ऐसा तबका जो थोड़ा समृद्ध है और उसे प्रतिनिधित्व मिला हुआ है और कई पार्टियों में उसका दबदबा है. दूसरी श्रेणी वह है जिनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है और इन्हें अत्यंत पिछड़ा वर्ग कहा जा सकता है। बीजेपी इन अति पिछड़ों पर ज्यादा फोकस कर रही है. दूसरी ओर, सपा ने पार्टी रैंकों में ओबीसी का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है और अब उम्मीदवार चयन में भी ओबीसी पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
पिछले दो लोकसभा चुनावों में कमजोर ओबीसी जातियों के मतदाता बीजेपी की ओर ज्यादा आकर्षित हुए हैं. पहले ओबीसी केवल कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों को वोट देते थे, लेकिन मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद वे सपा, जनता दल, आरएलडी, जेडीएस जैसी पार्टियों के साथ चले गये.
प्रधानमंत्री खुद ओबीसी हैं और बीजेपी गैर-प्रभावशाली ओबीसी जातियों को लुभाने में काफी हद तक सफल रही है. महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण देने की तैयारी है लेकिन ओबीसी आरक्षण कम नहीं किया जाएगा. बीजेपी ने जोर-शोर से कहा है कि अति पिछड़ी जातियों को ओबीसी आरक्षण और अन्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. पीएम रैलियों में जातियों का नाम भी लेते रहे हैं ताकि उन मतदाताओं को अपने प्रतिनिधित्व का एहसास हो सके. 90 के दशक में ही ओबीसी वोटर कांग्रेस से दूर हो गए थे. राहुल गांधी जानते हैं कि अगर ओबीसी वोटर वापस लौटे तो उनका पलड़ा भारी हो सकता है. यही वजह है कि कांग्रेस जातीय जनगणना का पुरजोर समर्थन कर रही है. महिला आरक्षण बिल में ओबीसी कोटा की मांग की गई है. इस तरह देखा जाए तो बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस और सपा भी ओबीसी पर ज्यादा फोकस करती नजर आ रही हैं.