यहूदी समाज की तकलीफ़ों को साहित्य में प्रतिबिंबित करते हुए लेखक ने युवा लेखकों को अध्ययन और मनन की अहमियत बताई।
साहित्य हमेशा इतिहास और उससे जुड़ी राजनीतिक घटनाओं का दस्तावेज़ बनता है। प्रसिद्ध लेखक ने हाल ही में युवा लेखकों को यह समझाने की कोशिश की कि केवल घटनाओं का वर्णन करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह दिखाना ज़रूरी है कि ये घटनाएं पात्रों और समाज पर क्या असर डालती हैं।

उन्होंने बताया कि उनकी रचनाओं में यहूदी समाज का बार-बार उठाया जाना केवल दस्तावेज़ीकरण तक सीमित नहीं है। "जो अपमान और परेशानी यहूदी समाज ने देखी है, उन तकलीफ़ों को मैंने जाना और निराशा भी देखी। त्रासदी हर इंसान के लिए अलग होती है," लेखक ने स्पष्ट किया।
युवा लेखकों के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण संदेश दिया: "खूब पढ़िए, अच्छी किताबें पढ़िए, धीरे-धीरे पढ़िए, उन्हें ग्रहण कीजिए और मनन कीजिए, तभी आपके लेखन में चमक आएगी। हम चाँद की रोशनी में पढ़ते थे। तब जाकर भाषा में स्वतंत्रता आती है।"

साहित्य में विज्ञान के महत्व पर भी लेखक ने जोर दिया। उन्होंने कहा कि लेखन में तथ्य और पुष्टिकरण बेहद आवश्यक हैं। "जब मैं कुछ भी लिखती हूँ, तो उसका पुष्टिकरण करके लिखती हूँ।"
यह दृष्टिकोण साहित्य को न केवल व्यक्तिगत अनुभवों का आईना बनाता है बल्कि समाज और इतिहास के साथ गहराई से जोड़ता है।
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