ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में जारी है एक ऐसा सिस्टम, जो नियमों से नहीं, रिश्तों और रसूख से चलता है। जहां कुछ कर्मचारी सालों से एक ही पद और डेस्क पर जमे हुए हैं, वहीं उनके नाम नहीं, बल्कि रिश्तेदारों के नाम पर जमा हो रही है अकूत संपत्ति। भारत न्यूज़ 360 टीवी की एक्सक्लूसिव पड़ताल में सामने आए हैं ऐसे दस्तावेज़, जो दिखाते हैं कैसे एक सरकारी कुर्सी से खड़ी हो रही है करोड़ों की मिल्कियत। क्या यही है सत्ता और सिस्टम की सेटिंग? जुड़िए इस खुलासे के साथ और जानिए—कौन हैं वो ‘बाबू’ जिनकी तनख्वाह से नहीं, उनकी संपत्ति बोलती है।
सबके लिए नियम, लेकिन कुछ के लिए रियायत?
सरकारी नियम कहते हैं—तीन साल से ज़्यादा एक ही पोस्टिंग नहीं।
ताकि कोई बाबू सिस्टम को ‘अपना दफ्तर’ न बना सके।
लेकिन ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में ये नियम सिर्फ पोस्टर तक सीमित हैं, जमीन पर कुछ और ही खेल चल रहा है।
हमारी टीम की लंबी पड़ताल और अंदरूनी फाइलों की जांच में निकला है वो सच, जो न तो किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया, न ही किसी विभागीय आदेश में दिखेगा।
📂 "एक ही चेहरा, एक ही डेस्क, सालों से सेटिंग"
कुछ कर्मचारी एक ही पद पर सालों से ‘स्थायी’ बने हुए हैं।
कोई ट्रांसफर नहीं, कोई बदलाव नहीं।
जबकि नियम कहता है—"तीन साल के बाद बदलाव जरूरी है।"
कुछ मामलों में नियुक्ति ही उस खास पद के लिए की गई थी—ये हम मानते हैं।
लेकिन जिनके रिश्तेदारों के नाम पर गाड़ियाँ, प्लॉट और ज़मीनें रजिस्टर्ड हैं,
वो संयोग नहीं, सिस्टम की बीमारी लगती है।
📜 हमारे पास हैं नाम, नक्शे और नकाब उखाड़ने वाले दस्तावेज़
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प्लॉट एलॉटमेंट की फ़ाइलें
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संदिग्ध ट्रांसफर नोटिस
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रिश्तेदारों के नाम की मिल्कियत
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और वो चुपचाप जमा होती अकूत संपत्ति, जो सरकारी तनख्वाह से मेल नहीं खाती।
🔥 अगली रिपोर्ट में:
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कौन हैं वो ‘अदृश्य खिलाड़ी’ जो कुर्सी पर नहीं, फिर भी फैसलों पर असर रखते हैं?
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किन बाबुओं की दौलत उनके सैलरी स्लिप से ज़्यादा तेज़ी से बढ़ी है?
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जवाब दिखाते हैं — दस्तावेज़ों के साथ, नकाबों के पीछे से।
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