गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की थाई शोधार्थिनी सुत्तिसा लैपर्मसाप ने बुद्धानुस्सति पर अपना पीएच.डी. शोध परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया। प्रो. अरविन्द कुमार सिंह के निर्देशन और प्रो. हीरा पॉल गंगनेगी के मूल्यांकन में संपन्न शोध को विद्वानों ने सराहा।
गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन एवं सभ्यता संकाय में शोधार्थिनी सुश्री सुत्तिसा लैपर्मसाप (थाईलैंड) का पीएच.डी. शोध परीक्षण सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। उनका शोधप्रबंध “थेऱवाद दर्शन में बुद्धानुस्सति की अवधारणा का विकास: एक सिद्धांतात्मक विश्लेषण” प्रो. अरविन्द कुमार सिंह के निर्देशन में तैयार हुआ, जबकि बाह्य परीक्षक प्रो. हीरा पॉल गंगनेगी (पूर्व विभागाध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय) रहे।

बुद्धानुस्सति, अर्थात् बुद्ध के गुणों का स्मरण, बौद्ध धर्म की केंद्रीय ध्यान-प्रक्रिया है। इसे त्रिपिटक में षट्क और दशक के रूप में प्रस्तुत किया गया है तथा बौद्धघोष की विशुद्धिमग्ग में विस्तार से समझाया गया है। सुश्री लैपर्मसाप के शोध ने इस साधना के ग्रंथीय और अ-ग्रंथीय दोनों रूपों की गहन पड़ताल की। शोध में दक्षिण-पूर्व एशिया (18वीं–20वीं शताब्दी) में बुद्धानुस्सति के सांस्कृतिक और सामाजिक रूपांतरण का विशेष विश्लेषण किया गया।

इस अवसर पर प्रोफेसर एन. पी. मेलकानिया (डीन, स्कूल ऑफ बौद्ध स्टडीज़), डॉ. चिंतला वेंकटा शिवसाई, डॉ. ज्ञानादित्य शाक्य (अनुसंधान संयोजक), डॉ. प्रियदर्शिनी मित्रा, डॉ. मनीष मेश्राम, श्री विक्रम यादव, सहित अनेक अध्यापकगण, शोधार्थी और विद्यार्थी मौजूद रहे। परीक्षकों ने उनके परिश्रम और योगदान की सराहना की।
स्कूल ऑफ बौद्ध स्टडीज़ एंड सिविलाइजेशन ने सुश्री सुत्तिसा लैपर्मसाप को पीएच.डी. उपाधि पूर्ण करने पर बधाई दी और उनके भावी शैक्षणिक प्रयासों के लिए शुभकामनाएँ दीं।
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