अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पद संभालने के बाद से आयात शुल्क बढ़ाने की उनकी धमकी से वैश्विक बाजार में हलचल मच गई है। ब्रिक्स देशों (भारत, चीन, ब्राजील, रूस, और दक्षिण अफ्रीका) के उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक आयात शुल्क लगाने की योजना ने अमेरिकी नागरिकों को चिंता में डाल दिया है। इस फैसले के बाद दवाइयाँ, गहने, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स, और घरेलू सामान जैसे टी-शर्ट्स और स्नीकर्स की कीमतें आसमान छू सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं में महंगाई का डर समा गया है।
ट्रंप का कहना है कि यह नीति अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देगी और रोजगार के अवसर सृजित होंगे, लेकिन इसके साथ ही अमेरिकी रिटेल कंपनियों पर भी भारी दबाव बढ़ेगा। नेशनल रिटेल फेडरेशन और कंज्यूमर टेक्नोलॉजी एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि इन शुल्कों का असर अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा।
रिपोर्टों के मुताबिक, 67 प्रतिशत अमेरिकी नागरिकों का मानना है कि ट्रंप के फैसले से कंपनियां अपनी बढ़ी हुई लागत को उपभोक्ताओं पर डाल सकती हैं, जिससे खाद्य पदार्थों, खिलौनों, गहनों और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं। हालांकि, चीन से संबंधित शुल्क को लेकर अमेरिका के नागरिकों में विशेष आक्रोश है, और 60 प्रतिशत अमेरिकी 60 प्रतिशत तक शुल्क लगाने के पक्ष में हैं।
इस बढ़ते व्यापारिक तनाव के बीच भारतीय IT कंपनियां भी अपना कदम बढ़ा चुकी हैं। अमेरिका में बढ़ते आयात शुल्क और विदेशी पेशेवरों के लिए कठिन होते हालात को देखते हुए, भारतीय कंपनियाँ वहां के स्थानीय कर्मचारियों की भर्ती में तेजी ला रही हैं। इन्फोसिस और टीसीएस जैसी कंपनियां पहले ही 25,000 से अधिक अमेरिकी कर्मचारियों को अपनी टीम में शामिल कर चुकी हैं।
भारत की आईटी कंपनियों के लिए यह समय नए बाजारों की तलाश का भी है, जहां वे अफ्रीका और अन्य क्षेत्रीय बाजारों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं। नैसकॉम के अनुसार, हेल्थकेयर, रिटेल और बैंकिंग सेक्टर में बदलावों के लिए भारतीय कंपनियों को तैयार रहना होगा।
ट्रंप की टैरिफ नीति अमेरिका के व्यापार को किस दिशा में ले जाएगी, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन एक बात साफ है—विश्वव्यापी व्यापार युद्ध की आहट अब हर कोने में महसूस की जा रही है!
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