भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण सुझाव सामने आए हैं, जब आरबीआई मौद्रिक नीति समिति (MPC) के सदस्य नागेश कुमार ने एक दिलचस्प विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने बेहतर नीति निर्माण के लिए देश में दो मुद्रास्फीति दरों की जरूरत जताई है। एक जो खाद्य वस्तुओं की कीमतों को शामिल करे और दूसरी जो खाद्य मुद्रास्फीति को बाहर रखे। उनका मानना है कि इससे नीति निर्माताओं को अधिक सटीक और प्रासंगिक दरों पर विचार करने का मौका मिलेगा, जिससे मुद्रास्फीति की समस्या पर काबू पाना आसान हो सकता है।
यह विचार उस समय आया है जब पिछले कुछ समय से भारतीय बाजार में खाद्य मुद्रास्फीति ने खासा असर डाला है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने पहले ही यह बताया था कि खाद्य वस्तुओं की कीमतें सप्लाई चेन के दबावों से निर्धारित होती हैं, न कि मौद्रिक नीति से। इसका मतलब यह है कि मौद्रिक नीति, जो आमतौर पर महंगाई को नियंत्रित करने के लिए होती है, खाद्य मुद्रास्फीति पर अधिक प्रभाव नहीं डाल सकती।
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति के सदस्य नागेश कुमार ने इस मुद्दे पर कहा, "हमारे पास दो मुद्रास्फीति दरें होनी चाहिए—एक जिसमें खाद्य कीमतें शामिल हों और दूसरी जिसमें न हों। इससे नीतियों को और प्रभावी तरीके से तैयार किया जा सकता है।"
देश की समग्र उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में खाद्य वस्तुओं का योगदान 46 प्रतिशत है, और यह आंकड़ा 2011-12 में निर्धारित किया गया था। समय की मांग को देखते हुए, इस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। कुमार के अनुसार, खाद्य मुद्रास्फीति को दर निर्धारण से बाहर करने के सुझावों पर विचार किया जा रहा है, जो नीति निर्माण में और अधिक पारदर्शिता ला सकता है।
यह विचार तब आया है जब दिसंबर में खुदरा मुद्रास्फीति 5.22 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जो चार महीने के निचले स्तर पर थी। हालांकि, इसका मुख्य कारण खाद्य कीमतों में वृद्धि और मौसमी असंतुलन था, जो बाद में सप्लाई बढ़ने पर सामान्य हो जाएगा।
भारत की आर्थिक स्थिति पर चर्चा करते हुए, कुमार ने कहा कि हाल के समय में आर्थिक वृद्धि में धीमी गति को अस्थायी माना जा सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगामी महीनों में आर्थिक वृद्धि में तेजी आएगी और भारत 6.5 प्रतिशत तक की वृद्धि हासिल करेगा।
अब सवाल यह है कि क्या दो महंगाई दरों का यह विचार वास्तव में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कारगर साबित होगा? क्या इससे खाद्य मुद्रास्फीति पर काबू पाया जा सकेगा और नीतियां और अधिक प्रभावी होंगी? यह समय ही बताएगा।
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