व्यापार संवाद में वैश्य समाज ने सरकार की नीतियों, GST और नौकरशाही पर गंभीर सवाल उठाते हुए आर्थिक भविष्य पर खतरे की चेतावनी दी
“हमारा व्यापार खत्म होने की कगार पर है”—व्यापार संवाद के दौरान वैश्य समाज की यह पीड़ा केवल एक वर्ग की आवाज नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ी एक गंभीर चेतावनी बनकर सामने आई। जिस समाज ने दशकों से भारत की आर्थिक रीढ़ को मज़बूती दी, वही आज हताश और असुरक्षित महसूस कर रहा है।
संवाद में वक्ताओं ने कहा कि सरकार की नीतियों ने बड़े कॉर्पोरेट और मोनोपॉली को खुली छूट दे दी है, जबकि छोटे और मध्यम व्यापारियों को नौकरशाही, जटिल नियमों और गलत GST व्यवस्था की जंजीरों में जकड़ दिया गया है। इससे न केवल व्यापार प्रभावित हुआ है, बल्कि उत्पादन और रोज़गार पर भी सीधा असर पड़ा है।
व्यापारियों का कहना है कि यह स्थिति केवल नीति की असफलता नहीं है, बल्कि भारत के आर्थिक भविष्य पर सीधा हमला है। छोटे व्यापारी, जो स्थानीय रोज़गार का सबसे बड़ा स्रोत हैं, आज अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। गलत टैक्स ढांचा, अनावश्यक कागजी कार्रवाई और असमान प्रतिस्पर्धा ने उन्हें हाशिये पर धकेल दिया है।
संवाद में BJP सरकार की आर्थिक नीतियों पर भी तीखा हमला किया गया। वक्ताओं ने इसे “सामंतवादी सोच” करार देते हुए कहा कि ऐसी नीतियां चंद बड़े घरानों को फायदा पहुंचाती हैं, जबकि मेहनतकश व्यापारी वर्ग टूट रहा है।
इस मौके पर स्पष्ट कहा गया कि यह लड़ाई सिर्फ किसी एक समाज की नहीं, बल्कि देश के व्यापार, रोज़गार और आर्थिक आत्मनिर्भरता की है। वक्ताओं ने ऐलान किया कि इस संघर्ष में देश के व्यापार की रीढ़ माने जाने वाले वैश्य समाज के साथ पूरी ताकत से खड़ा रहा जाएगा।
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